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क्या आपको मालूम हैं? सिद्धपीठ कुरुड से आयोजित होती हैं नंदादेवी जात,जबकि नौटी से होती हैं राजजात..

चमोली: इन दिनों चमोली जनपद नंदामयीं हैं,नंदाअष्टमी  यानी 10 सितंबर को सिद्धपीठ कुरुड से लोकजात(यात्रा) के लिए निकली देवी की डोलियाँ विभिन्न पड़ावो को पार करने के पश्चात बैदनी कुंड और नंदानगर विकासखंड के बालपाटा पहुँचती हैं।जहाँ लोकज़ात का विधिवत समापन होता हैं।बैदनी में ज़ात संपन्न होने के बाद माँ नंदादेवी की डोली अपने नौनिहाल थराली विकासखंड के देवराडा में छ: माह के लिए विराजमान रहती हैं,इस दौरान कुरुड गाँव के ही गौड ब्राह्मणों के द्वारा देवराडा में ही देवी पूजन किया जाता हैं।उधर बालपाटा में जात संपन्न होने के बाद नंदादेवी की दूसरी डोली कुरुड मंदिर पहुँचती हैं,और छ: माह अपने नैनीहाल देवराडा में विराजमान रहने के बाद नंदादेवी की दौनों डोलियाँ एक साथ कुरूड मंदिर में एक साथ विराजमान रहती हैं।

उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देवी सिद्धपीठो में कुरुड मंदिर का अपना अलग स्थान हैं।इसी मंदिर से 12 वर्षों में आयोजित होने वाली एशिया की सबसे लंबी धार्मिक पैदल यात्रा नंदादेवी जात का आयोजन होता हैं।यहीं से माँ नंदादेवी की डोली कैलाश के लिए विदा होती हैं।साथ ही हर साल  आयोजित होने वाली नंदा लोकजात का आयोजन भी कुरूड मंदिर से होता हैं,वहीं दूसरी ओर नौटी से राजजात का आयोजन होता हैं,यहाँ से परंपरा के अनुसार राजा के वंशज  नंदकेशरी उस देवी के दर्शनों के लिए पहुँचते हैं,जिस देवी की देवी जात कुरुड से शुरू होकर नंदानगर में कई गाँवों के पढ़ावों को पार करते हुए देवाल और थराली विकासखंडों के मध्य स्थित नंदकेशरी पहुँचती हैं।यहाँ राजा के वंशज देवी को लाया गया प्रसाद और शृंगार देवी को चढ़ाते हैं,और पूजा अर्चना करते हैं।

अब राजजात और नंदादेवी जात पर विस्तार से चर्चा कर लेते हैं,और आसान शब्दों में समझ भी लेते हैं,अगर नंदादेवी राजज़ात की बात करें तो यह नौटी से शुरू होकर नंदकेशरी में समाप्त मानी जानी चाहिये,क्योंकि पुराने समय में राजा अपने सैनिकों के साथ देवी के दर्शनों और दोषमुक्त होने के लिए नंदकेशरी पहुँचा था।जिसके बाद कुरुड मंदिर से देवीजात के लिए निकली देवी अपनी धार्मिक यात्रा के लिए कैलाश निकल गई।इसका आशय यह हुआ कि देवी की जात पुराने समय से ही कुरुड मंदिर से ही देवी जात के नाम से आयोजित होती रही हैं।तभी राजा अपने दल बल के साथ उस दौरान देवी के दर्शनों के लिए नंदकेशरी पहुँचा,यानी नौटी से नंदकेशरी तक जाने वाली 12 सालो वालीयात्रा को राजजात कहा जा सकता हैं,लेकिन सिद्धपीठ कुरुड से कैलाश जाने वाली देवी डोली के साथ चलने वाली बारह सालो में एक बार आयोजित होने वाली यात्रा को नंदादेवी जात ही कहलाना उचित रहेगा।

 

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