
चमोली(नंदानगर) चमोली में नंदानगर विकासखंड के कुछ ऐसे गांव हैं,जहाँ आज भी गांव के ग्रामीण होली का पर्व नहीं मनाते हैं।और ना ही ग्रामीण एक दुसरे को रंग लगाते हैं।नंदानगर विकासखंड के रामणी,घूनी,और पड़ेरगांव में होली खेलना पंचायत के द्वारा पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया हैं।और होली खेलने की यह परंपरा बीतें कई वर्षों से चली आ रहीं हैं।इन गाँवो में होली न खेलने की वजह भी अनोखी हैं।ग्रामीणों का मानना हैं कि गांव में अगर ग्रामीणों ने अगर होली खेली तो देवीय प्रकोप के चलते औलवृष्टि होती हैं।जिससे खेतों की फसल खराब हो जाती हैं।जिस वजह से गांव के लोगो होली खेलने से परहेज रखतें हैं।
रामणी गांव के निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता 66 वर्षीय रणजीत सिंह नेगी बताते हैं कि उन्हें भी नहीं पता कि गांव में होली कब से नहीं मनाई जाती हैं,लेकिन साल करीब 1954 में गांव के ही उनके ताऊ दौलत सिंह जो कि उस दौरान इलाके के पोस्टमैन थे।उनके द्वारा गांव में होली मनाई गई थी,जिसके तत्काल बाद उनके गांव में जोरदार औलावृष्टि हुई थी,और ग्रामीणों की खेतों में खड़ी फ़सले बर्बाद हो गई थी।यह इसलिए कि उनके द्वारा होली न खेलनें की पुरानी परंपरा को तोड़ा गया था।बताया कि आज भी गांव में होली का पर्व नहीं मनाया जाता हैं।
इसी विषय पर दूरभाष से हुई बातचीत में घूनी गांव के निवर्तमान क्षेत्र पंचायत सदस्य हरीश रावत ने बताया कि पुराने समय के लोगो की होली न मनाने की परंपरा गांव में रही हैं।लेकिन आज के इस बदलते दौर में प्रयोग किए जाने चाहिए,क्या वास्तव में होली मनाने से गाँव में औलावृष्टि जैसी बात होती हैं।इसलिए उन्होंने प्रयोगात्मक तौर पर कुछ लोगो की सहमति पर रंगों की होली खेली हैं।औलवृष्टि जैसी बात होती हैं,तो आगे गाँव में होली न मनाने को लेकर विचार किया जाएगा।