बद्रीनाथ धाम: पितृपक्ष शुरू होते ही अपने पित्रों के तर्पणों के लिए देश विदेशों से लोग बद्रीनाथ धाम पहुँचने लगे हैं।बद्रीनाथ धाम को भू बैकुंठ के साथ साथ को मोक्ष का द्वार भी कहा गया हैं।इस स्थान पर अपने पित्रों का एक बार पिंडदान करने पर दोबारा कभी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं।बद्रीनाथ धाम में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल में मृत व्यक्तियों की जन्म कुंडलियो को भी प्रवाहित करने के लिए इन दिनों लोग पहुँचते हैं।
विश्व के सभी तीर्थों में से मोक्ष प्राप्ति के लिये सर्वोच्च तीर्थ बद्रीनाथ धाम को कहा गया है।यहाँ ब्रह्मकपाल में पित्रों का पिंडदान करने से गया,मथुरा,और काशी से एक हज़ार गुना अधिक पुण्य अर्जित होता हैं।इसलिए पितृ पक्ष में नारद खंड से लेकर ब्रह्मकपाल तक श्राद्ध करने वाले लोगो की भीड़ लगी रहती हैं।
वेद पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी जब स्वयं के द्वारा उत्पन्न सरस्वती के सौंदर्य पर मोहित हो गए तो भगवान शंकर को ब्रह्म जी की इस हरकत पर भयंकर क्रोध आ गया,उन्होंने क्रोध में अपने त्रिशूल से ब्रह्माजी का पांचवां सिर धड़ से अलग कर दिया।ब्रह्मा जी का शिर धड़ से अलग तो हो गया लेकिन यह सिर भगवान शिव के त्रिशूल पर चिपक गया,और उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप भी लग गया।ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए भगवान शिव कई तीर्थ गये,लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिली।माना जाता हैं,कि जिस स्थान को आज ब्रह्माकपाल के नाम से जानते हैं उसी स्थान पर ब्रह्म जी का पांचवां सिर भगवान शिव के त्रिशूल से छिटककर गिर गया।और इसी स्थान पर शंकर भगवान को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।उधर महाभारत के युद्ध के बाद पाण्डवों ने भी हिमालय यात्रा के दौरान अपने पित्रों का तर्पण और पिंडदान इसी स्थान पर किया था।