अपनों के लिए अपने होंगे क़ुर्बान,जंगलों की आग पर अंकुश लगाने के लिए काटे जायेंगे 5000 सें अधिक हरे पेड़..

चमोली:(गोपेश्वर)
चमोली जिले में हर साल जंगलों में लगने वाली आग की बढ़ती घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण के लिए वन विभाग एक बड़ा और अहम कदम उठाने जा रहा है। जिले में 20 मीटर चौड़ी और लगभग 20 किलोमीटर लंबी फायर लाइन का निर्माण किया जाएगा, जिसके लिए कुल 5,184 हरे पेड़ों का कटान प्रस्तावित है। इस योजना को केंद्र सरकार से स्वीकृति मिल चुकी है और प्रथम चरण में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग क्षेत्र में कार्य भी शुरू कर दिया गया है।
वन विभाग के अनुसार, प्रस्तावित फायर लाइन के दायरे में आने वाले अधिकांश पेड़ चीड़ प्रजाति के हैं, जो आग को तेजी से फैलाने में सहायक माने जाते हैं। पेड़ों के कटान की जिम्मेदारी वन विकास निगम को सौंपी गई है। कटान के बाद वनकर्मी फायर लाइन क्षेत्र में मौजूद सूखी घास, पत्तियां, झाड़ियां और अन्य ज्वलनशील सामग्री को फायर सीजन शुरू होने से पहले साफ करेंगे, ताकि जंगल की आग एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में न फैल सके।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी सर्वेश कुमार दुबे ने बताया कि वन विभाग के पास जंगल की आग से निपटने के लिए संसाधन सीमित हैं। ऐसे में यह फायर लाइन योजना जंगलों में लगने वाली आग को नियंत्रित करने में बेहद कारगर साबित हो सकती है। विभाग का लक्ष्य है कि फायर सीजन शुरू होने से पहले फायर लाइन निर्माण का कार्य पूरा कर लिया जाए, ताकि वन संपदा, जैव विविधता और वन्य जीवों को होने वाले नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
गौरतलब है कि चमोली जनपद के पोखरी क्षेत्र समेत जिले के कई वन क्षेत्र हर वर्ष भीषण जंगल की आग की चपेट में आ जाते हैं। इससे न केवल करोड़ों रुपये की बहुमूल्य वन संपदा नष्ट होती है, बल्कि वन्य जीवों का जीवन भी गंभीर संकट में पड़ जाता है। जंगलों में लगने वाली आग का दुष्प्रभाव पर्यावरणीय असंतुलन के रूप में मानव जीवन पर भी साफ दिखाई देता है।
चमोली से रुद्रप्रयाग तक फैले केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग क्षेत्र में चोपता जैसे अति संवेदनशील बफर जोन के साथ-साथ उच्च हिमालयी क्षेत्र भी शामिल हैं। इन इलाकों में आग की घटनाएं वन विभाग के लिए लंबे समय से चिंता का विषय बनी हुई हैं, क्योंकि दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आग पर काबू पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
वन विभाग का कहना है कि पूर्व में भी जंगलों में आग की रोकथाम के लिए फायर लाइनें बनाई जाती थीं। हालांकि, 1980 के दशक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षित वनों में हरे पेड़ों के कटान पर रोक लगाए जाने के बाद कई पुरानी फायर लाइनों में दोबारा पेड़ उग आए और वे फिर से घने जंगल का रूप ले चुकी हैं। परिणामस्वरूप, वे फायर लाइनें अपनी उपयोगिता खो बैठीं। वर्तमान परिस्थितियों और बढ़ते फायर जोखिम को देखते हुए केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार नई फायर लाइन का चयन किया गया है।
वन विभाग को उम्मीद है कि इस योजना के सफल क्रियान्वयन से चमोली जिले में जंगलों की आग की घटनाओं में कमी आएगी और भविष्य में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।




