आख़िर क्यों? स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य लिखनें से परहेज़ कर रही मीडिया,जानियें असल वजह!
चमोली:इन दिनों चमोली मंगलम यात्रा के तहत जनपद के विभिन्न मठ मंदिरों में विचरण कर रहे ज्योतिष्पीठ के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के तौर पर यात्रा संचालित कर रहे हैं।यह यात्रा सनातन संस्कृति सभ्यता व धार्मिक परंपराओं के संरक्षण के लिहाज़ से बेहद अहम मानी जा रही हैं,यात्रा का जगह जगह जल कलश यात्रा के साथ भव्य स्वागत भी हो रहा हैं।लेकिन तमाम मीडिया संस्थानों द्वारा प्रकाशित समाचारों में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के बजाय ज्योतिर्मठ के संत से संबोधित किया जा रहा हैं।जिससे लोगो में इस बात को लेकर चर्चा बनी हुई हैं,कि अगर अविमुक्तेशवरानंद ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य हैं तो अख़बार या मीडिया संस्थान इन्हें महज़ संत लिखकर इतिश्री क्यों कर रहे हैं।
नोटिस में लिखा गया हैं कि हाल ही में हमनें कुछ अखबारो और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया,पत्रिकाओं,यूट्यूब चैनलो,सोशल मीडिया में पाया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के ख़िलाफ़ जाकर अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के नाम से उद्बोधन किया जा रहा हैं।हम अनुरोध करते हैं कि आपके समाचार पत्र,ई पेपर,और आनलाईंन से अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से संबंधित सामग्री को हटा दें,जहाँ भी आपने अपने समाचार में स्वयंभू बाबा अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर के रूप में संबोधित करने,के लिए उपाधि का उल्लेख किया हैं,हम बिना किसी देरी के संपूर्ण सामग्री को किसी भी मोड़ से तत्काल हटाने और इस प्रकार की ग़लतियों को दोबारा न दोहराने का अनुरोध करते है।आपकी ग़लतियों के संबंध में हम आपसे अनुरोध करते हैं।साथ ही हमें आपसे स्पष्टीकरण की आवश्यकता हैं।यदि आप 15 दिनों के भीतर अपनी ग़लतियों को लेकर उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहते हैं तो आपके अखबार या मीडिया या प्रकाशन का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। भविष्य में यदि आपकी खबर किसी इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट मीडिया या किसी प्रकाशन या किसी पत्रिका में छपती है, यदि आप सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ कोई खबर प्रकाशित करते हैं तो यह एक गंभीर अपराध माना जाएगा, सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के तहत दंडनीय अपराध माना जाएगा। आईपीसी धारा अधिनियम के तहत कारावास/जुर्माना/दोनों हो सकता है और लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
पूरे प्रकरण में मीडिया संस्थानों से बात तो नहीं हो पाई लेकिन प्रथम दृष्टया स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को एकाएक शंकराचार्य से संत लिखना सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता का मीडिया संस्थानों को भेजा गया यह नोटिस भी बड़ा कारण हो सकता हैं।