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बदरीनाथ धाम में भगवान बदरी विशाल के साथ कॉकरोच को भी लगता है भोग, जानिए इसके पीछे की अनोखी परंपरा

चमोली (उत्तराखंड) देशभर के श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए आस्था के केंद्र भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट आज खोल दिए गए हैं।बद्रीनाथ धाम अपने दिव्य वातावरण और धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।आमतौर पर विष्णु मंदिरों में भगवान की पूजा खड़े हुए स्वरूप में की जाती है,लेकिन बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु को पद्मासन मुद्रा में पूजा जाता है।यही नहीं, इस मंदिर में प्रतिदिन एक अनोखी परंपरा भी निभाई जाती है,जो लोगों को हैरान कर देती है,यहां भगवान बदरी विशाल के साथ-साथ कॉकरोच,गाय और पक्षियों को भी भोग लगाया जाता है।

बदरीनाथ मंदिर के दस्तूर (परंपरागत नियमों) में इस अनोखी परंपरा का उल्लेख मिलता है।प्रतिदिन भगवान बदरीनाथ को जहां केसर का भोग चढ़ाया जाता है, वहीं कॉकरोच, गाय और पक्षियों को एक-एक किलो चावल अर्पित किए जाते हैं।बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के अनुसार, मंदिर के पास स्थित गरुड़ शिला की तलहटी में खास तरह के कॉकरोच पाए जाते हैं, जिन्हें स्थानीय गढ़वाली भाषा में ‘सांगला’ कहा जाता है। ये सामान्य कॉकरोच से आकार में थोड़े बड़े होते हैं।पूर्व धर्माधिकारी बताते हैं कि भले ही दस्तूर में कॉकरोच को भोग लगाने का स्पष्ट उल्लेख है, लेकिन इस परंपरा के पीछे का कारण किसी भी धार्मिक ग्रंथ में स्पष्ट नहीं हैं।

ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में बदरीनाथ धाम की स्थापना की थी। कहा जाता है कि उन्होंने भगवान विष्णु की पद्मासन शिला को तप्तकुंड से उठाकर गरुड़ शिला के नीचे स्थापित किया था, जहां ये कॉकरोच निवास करते थे। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भगवान के साथ इन जीवों को भी भोग अर्पित किया जाए।

बदरीनाथ की यह परंपरा यह भी दर्शाती है कि उत्तराखंड की धार्मिक मान्यताएं केवल देवताओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यहां पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों के साथ भी सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है।यह परंपरा मानव और प्रकृति के बीच संतुलन और सह-अस्तित्व का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है।

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