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संस्कृति और विरासत के प्रतीक विश्वप्रसिद्ध रम्माण मेले का आगाज..

चमोली:यनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित प्रसिद्ध रम्माण मेले का चमोली जनपद के जोशीमठ विकासखंड स्थित सलूड डुंगरा गांव में आज से आगाज हो गया हैं।इस दौरान पौराणिक परम्पराओं और पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का विधिवत् शुभारंभ किया गया।

रम्माण मेले रामायण का ढोल दमाऊं की 18 तालों पर जागरों के साथ मंचन किया गया। इसके साथ ही कलाकारों ने यहां धूम-धाम के साथ भूमियाल देवता मंदिर के प्रांगण में आयोजित मेले में राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान के पात्रों ने ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हुए रामायण का मंचन किया।जिसमें राम जन्म, सीता स्वयंवर, वन प्रस्थान, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन का वर्णन किया गया।दर्शकों के मनोरंजन के लिए मुखौटा नृत्य आयोजित किया गया। जिसमें म्वर-म्वरीण, बणियां- बणियांण, ख्यलारी आदि नृत्य किए गए।मेले के दौरान भूमि के देवता माने जाने वाले भूमियाल देवता के पाश्वा ने भी नृत्य किया। उसके बाद माल नृत्य किया गया।

सलूड़ गाँव के अलावा डुंग्री, बरोशी, सेलंग गांवों में भी रम्माण का आयोजन किया जाता है।रम्माण मेला कभी 11 दिन तो कभी 13 दिन तक भी मनाया जाता है।यह विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक शृंखला है।इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि विविध रंगी आयोजन होते हैं। इसमें परम्परागत पूजा-अनुष्ठान तथा मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित होते है। यह भूम्याल देवता के वार्षिक पूजा का अवसर भी होता है एवं परिवारों और ग्राम-क्षेत्र के देवताओं से भेंट करने का मौका भी होता है।

रम्माण, सलूड़ गांव की 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी परम्परा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन यूनेस्को द्वारा साल 2009 में इस रम्माण को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया गया था। जोड़े पारंपरिक ढोल-दमाऊं की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य सबको रोमांचित करने वाला होता है और कुरजोगी सबका मनोरंजन करता है।मान्यता है कि आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में नई जान फूकने के लिए पूरे देश में चार मठों की स्थापना की। जोशीमठ के आस पास, शंकराचार्य के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने गांव-गांव में जाकर पौराणिक मुखौटों से नृत्य करके लोगों में चेतना जगाने का प्रयास किया था जो धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में इस समाज का अभिन्न अंग बन गया।

 

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